नमस्कार 🙏
यहां इस लेख में सभी प्रकार के तर्पणों की सही विधि विस्तार पूर्वक चित्रों सहित दी गई है ताकि आप एकदम सही ढंग से तर्पण कर्म कर सकें।
संपूर्ण तर्पण विधि
सोना, चाँदी, ताँबा, काँसा का पात्र पितरों के तर्पण में प्रशस्त माना गया है। मिट्टी तथा लोहे का पात्र सर्वथा वर्जित है।
तिल–तर्पण का निषेध—सप्तमी एवं रविवार को, घर में, जन्मदिन में, दास, पुत्र और स्त्री की कामनावाला मनुष्य तिल से तर्पण न करे। नन्दा (प्रतिपदा, षष्ठी, एकादशी) तिथि, शुक्रवार, कृत्तिका, मघा एवं भरणी नक्षत्र, रविवार तथा गजच्छायायोग में तिल मिले जल से कदापि तर्पण न करें।
कुशा कें अग्रभाग से देवताओं का, मध्यसे मनुष्यों का और मूल तथा अग्रभाग से पितरों का तर्पण करें।
घर में, ग्रहण, पितृश्राद्ध, व्यतीपातयोग, अमावस्या तथा संक्रान्ति के दिन निषिद्ध होने पर भी तिल से तर्पण करें। किन्तु अन्य दिनों में घर में तिल से तर्पण न करे।
तर्पण–प्रयोग–विधि :
गायत्री मंत्र से शिखा बाँधकर, तिलक लगाकर, प्रथम दाहिनी अनामिका के मध्य पोरे में दो कुशों और बायीं अनामिका में तीन कुशों की पवित्री धारण कर लें। फिर हाथ में त्रिकुश, यव(जौ), अक्षत और जल लेकर निम्नलिखित संकल्प पढ़ें—
अथ श्रुति–स्मृति–पुराणोक्तफल–प्राप्त्यर्थं देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणं करिष्ये।
आवाहन— इसके बाद ताँबे के पात्र में जल और चावल डालकर त्रिकुश को पुर्वाग्र रखकर उस पात्र को दायें हाथ में लेकर, बायें हाथ से ढ़ककर नीचे लिखा मंत्र पढ़कर देव–ऋषिगणों का आह्वान करें।
आवाहन–मंत्र—
ब्रह्मादयः सुराः सर्वे ऋषयः सनकादयः। आगच्छन्तु महाभागाः ब्रह्माण्डोदरवर्तिन:॥
(1) देव–तर्पण–विधि—
देव तथा ऋषि–तर्पण में—
1. पूर्व दिशा की ओर मुँह करें। 2. जनेऊ को सव्य रखें। 3. दाहिना घुटना जमीन पर लगाकर बैठें। 4. अञ्जलि पात्र में चावल छोड़ें। 5. तीनों कुशों को पूर्व की ओर अग्रभाग कर रखें। 6. जल की अञ्जलि एक–एक हो। 7. देवतीर्थ से अर्थात् दाहिने हाथ की अँगुलियों के अग्रभाग से दें। 8. जलांञ्जलि को सोना, चाँदी, ताँबा अथवा काँसे के बर्तन में डालें। यदि नदी में तर्पण कर रहे है तो दोनों हाथों को मिलाकर जलसे भरकर गाय के सींग जितना अञ्जलि उठाकर जल में ही अञ्जलि डाल दें।
निम्नलिखित प्रत्येक नाम–मन्त्र के बाद तृप्यताम कहकर एक–एक अञ्जलि जल देते जायें-
ॐ ब्रह्मा तृप्यताम।
ॐ विष्णुस्तृप्यताम।
ॐ रुद्रस्तृप्यताम।
ॐ प्रजापतिस्तृप्यताम।
ॐ देवास्तृप्यताम।
ॐ छन्दांसि तृप्यताम।
ॐ वेदास्तृप्यताम।
ॐ ऋषयस्तृप्यताम।
ॐ पुराणाचार्यास्तृप्यताम।
ॐ गन्धर्वास्तृप्यताम्।
ॐ इतिहाचार्यास्तृप्यताम।
ॐ संवत्सरः सावयवस्तृप्यताम।
ॐ देव्यस्तृप्यताम।
ॐ अप्सरस्तृप्यताम।
ॐ देवानुगास्तृप्यताम।
ॐ नागास्तृप्यताम।
ॐ सागरास्तृप्यताम।
ॐ पर्वतास्तृप्यताम।
ॐ सरितस्तृप्यताम।
ॐ मनुष्यास्तृप्यताम।
ॐ यक्षास्तृप्यछाम।
ॐ रक्षांसि तृप्यताम।
ॐ पिशाचास्तृप्यताम।
ॐ सुपर्णास्तृप्यताम।
ॐ भूतानि तृप्यताम।
ॐ पशवस्तृप्यताम।
ॐ वनस्पतयस्तृप्यताम।
ॐ औषधयस्तृप्यताम।
ॐ भूतग्रामस्चतुर्विधस्तृप्यताम।
(2) ऋषि–तर्पण :
इसी प्रकार निम्नलिखित मन्त्रों द्वारा मरीचि आदि ऋषिगणों को भी एक–एक अञ्जलि जल दें—
ॐ मरीचिस्तृप्यताम। ॐ अत्रिस्तृप्यताम। ॐ अङ्गिरास्तृप्यताम। ॐ पुलस्त्यस्तृप्यताम। ॐ पुलहस्तृप्यताम। ॐ क्रतुस्तृप्यताम।
(3) दिव्य मनुष्य–तर्पण :
दिव्य मनुष्य–तर्पण में—
1. उत्तर दिशा की ओर मुँह करें।
2. जनेऊ को कंठी की तरह कर लें।
3. गमछे को भी कंठी की तरह कर लें।
4. सीधा बैठें। कोई घुटना जमीन पर न लगायें।
5. अञ्जलि पात्र में जौ छोड़े।
6. तीनों कुशों को उत्तराय रखे।
अंजलि प्राजापत्य तीर्थ (काय) से दें अर्थात् कुशों को दाहिने हाथ की कनिष्ठिका के मूल भाग में रखकर यहीं से जल दें।
७. दो–दो अञ्जलियाँ दें।
अञ्जलि दान के मन्त्र—
ॐ सनकस्तृप्यताम। ॐ सनन्दनस्तृप्यताम। ॐ सनातनस्तृप्यताम। ॐ कपिलस्तृप्यताम। ॐ आसुरीस्तृप्यताम। ॐ बोधुस्तृप्यताम। ॐ पञ्चशिखस्तृप्यताम।
(4) दिव्य पितृतर्पण—
१. दक्षिण दिशा की ओर मुँह करें।
२. अपसव्य हो जायें अर्थात् जनेऊ को दाहिने कंधे पर रख कर बांए हाथ के नीचे ले जायें।
३. गमछे को भी दाहिने कंधे पर रखें।
४. बायां घुटना जमीन पर लगाकर बैठें।
5. अर्ध्य पात्र में काले तिल छोड़ें।
६. कुशों को बीच से मोड़कर उनकी जड़ और अग्रभाग को दाहिने हाथ में तर्जनी और अँगूठे के बीच में रखें।
७. पितृतृतीय से अर्थात् अँगूठे और तर्जनीके मध्यभाग से अञ्जलि दें।
८. तीन–तीन अञ्जलियाँ दें।
उपर्युक्त नियम से प्रत्येक मन्त्र से तीन–तीन अञ्जलियाँ जल की दें। मन्त्र इस प्रकार हैं—
ॐ कव्यवाडनलस्तृप्यताम इदं सलिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।
ॐ ससोमस्तृप्यताम् इदं सलिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः (३)।
ॐ यमस्तृप्यताम। इदं सलिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः (३)।
ॐ अर्यमा तृप्यताम। इदं सलिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः (३)।
ॐ अग्निष्वात्ता: पितरस्तृप्यताम इदं सलिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तैभ्य स्वधा नमः। तैभ्य स्वधा नमः। तैभ्य स्वधा नमः।
ॐ सोमपा पितरस्तृप्यताम इदं सलिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तेभ्य: स्वधा नमः (३)।
ॐ बर्हिषदः पितरस्तृप्यताम इदं सलिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः (३)।
(5) यम–तर्पण:
इसी प्रकार निम्नलिखित प्रत्येक नाम से यमराज को पितृतृतीय से हो दक्षिणाभिमुख तीन–तीन अञ्जलियाँ दें—
ॐ यमाय नमः (३)।
ॐ धर्मराजाय नमः (३)।
ॐ मृत्यवे नमः (३)।
ॐ अन्तकाय नमः (३)।
ॐ वैवस्वताय नमः (३)।
ॐ कालाय नमः (३)।
ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः (३)।
ॐ औदुम्बराय नमः (३)।
ॐ दध्नाय नमः (३)।
ॐ नीलाय नमः (३)।
ॐ परमेष्ठिने नमः (३)।
ॐ वृकोदराय नमः (३)।
ॐ चित्राय नमः (३)।
ॐ चित्रगुप्ताय नमः (३)।
(6) मनुष्यपितृतर्पण:
पितरों का तर्पण करने के पूर्व निम्नलिखित मन्त्रों से हाथ जोड़कर प्रथम उनका आह्वान करें—
ॐ उशन्तस्त्वा नि धीमह्युशन्त: समिधीमहि।
उशन्नुशत आ वह पितृन हविषे अत्तवे।।
आ यन्तु नः पितरः सोम्यासोऽग्निष्वात्ता: पथिभिर्देवयानैः।
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तोऽधि ब्रुवंतु तेवन्त्वस्मान्।।
यदि ऊपर लिखे वेदमन्त्रों का शुद्ध उच्चारण सम्भव न हो तो निम्नलिखित वाक्यों का उच्चारण कर पितरों का आह्वान करें-
ॐ आगच्छन्तु मे पितर इमं गृह्णन्तु जलाञ्जलिं॥
इसी तरह नीचे लिखे मन्त्रों का भी शुद्ध उच्चारण सम्भव न हो तो मन्त्रों को छोड़कर केवल ‘अमुकगोत्रः अमुकनामा:’ आदि संस्कृतवाक्य बोलकर तिलोदक के साथ तीन–तीन जलाञ्जलियाँ दें, यथा—
अमुकगोत्रः अस्मत्पिता (पिता का नाम) वसुरूपस्तृप्यतामिदं तिलोदकं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः। तस्मै स्वधा नमः। तस्मै स्वधा नमः।
(३ बार)
अमुकगोत्रः अस्मत्पितामह: (दादा का नाम) रुद्ररुपस्तृप्यतामिदं तिलोदकं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः।
(३ बार)
अमुकगोत्रः अस्मत्प्रपितामह: (परदादा का नाम) आदित्यरूपस्तृपयतामिदं तिलोदकं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः।
(३ बार)
अमुकगोत्रा अस्मनमाता (माता का नाम) वसुरूपा तृप्यतामिदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः। तस्मै स्वधा नमः। तस्मै स्वधा नमः।
(३ बार)
अमुकगोत्रा अस्मत्पितामही (दादी का नाम) रुद्ररूपा तृप्त्यामिदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः।
(३ बार)
अमुकगोत्रा अस्मत्प्रपितामही (परदादी का नाम) आदित्यरूपा तृप्त्यामिदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः।
(३ बार)
यदि सौतेली माँ मर गयी हो तो उसको भी तीन बार जल दें—
अमुकगोत्रा अमुकस्मिता अमुकी देवी तृप्त्यामिदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः।
(३ बार)
👉 इसके बाद निम्नलिखित नौ मन्त्रों को पढ़ते हुए पितृतीर्थ विधि से जल गिराते रहें।
(जिन्हें वेदमन्त्र न आता हो, वे इसे ब्राहमण द्वारा पढ़वायें या छोड़ भी सकते हैं।)
ॐ उदीरतामवर उत्परास उन्मध्यमा पितरः सोम्यासः।
असुं य ईयुरवृका ऋतज्ञास्ते नोवन्तु पितरो हवेषु।
अंगिरसो न: पितरो नवग्वाः अथर्वाणो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयं सुमतौ यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसे स्याम॥
आ यन्तु नः पितरः सोम्यासोऽग्निष्वात्ता पथिभिर्देवयानै:।
अस्मिन यज्ञे स्वधया मदन्तोधि ब्रुवन्तु तेवन्त्वस्मान्।।
ऊर्जं वहन्तीरमृतं घृतं पयः कीलालं परिस्त्रुतम्।
स्वधां स्थ तर्पयत में पितृन
पितृभ्यः स्वधायिभ्य: स्वधा नमः।
पितामहेभ्यः स्वधायिभ्य स्वधा नमः।
प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्य स्वधा नमः।
अक्षन्पितरोमीमदन्त पितरोतीतृपन्त पितरः पितरः शुन्धध्वम्।
ये चेह पितरो ये च नेह यांश्च विद्य मां उ च न प्रविध्य। त्वं वेत्थ यति ते जातवेद: स्वधाभिर्यज्ञं सुकृतं जुषस्व।
मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः।
माध्व्रीर्नः सन्त्वोषधीः॥
मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिवं रजः।
मधु द्यौरस्तु नः पिता॥
मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमां अस्तु सूर्य:।
माध्वीर्गावो भवन्तु नः॥
ॐ मधु! मधु! मधु! तृप्यध्वम्। तृप्यध्वम्। तृप्यध्वम्।
फिर नीचे लिखे मन्त्रों का पाठ मात्र करें—
ॐ नमो वः पितरो रसाय नमो वः पितरः शोषाय नमो वः पितरो जीवाय नमो वः पितरः स्वधाय नमो वः पितरो घोराय नमो वः पितरो मन्यवे नमो वः पितरः पितरो नमो वो गृहान्न: पितरो दत्त सतो वः पितरो देषमैतद्व: पितरो वास आधत्त।
द्वितीय गोत्र-तर्पण—
इसके बाद द्वितीय गोत्रवाले (ननिहालके) मातामह (नाना) आदि का तर्पण करे। यहाँ भी पहले की भाँति निम्नलिखित वाक्यों को तीन-तीन बार पढ़कर तिल सहित जलकी तीन-तीन अंजलियाँ पितृतीर्थ विधि से दें-
अमुकगोत्रः अस्मन्मातामह (नाना का नाम) वसुरूपस्तृप्यतामिदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः (३)।
अमुकगोत्रा अस्मन्मातामही (नानी का नाम) दा वसुरूपा तृप्यतामिदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः (३)।
समर्पण— निम्नलिखित वाक्य पढ़कर यह तर्पण-कर्म भगवान् को समर्पित करे—
अनॆन यथाशक्तिकृतॆन देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणाख्येन कर्मणा भगवान् पितृस्वरूपी जनार्दनवासुदेवः प्रीयंतां न मम। ॐ तत्सद्ब्रह्मार्पणमस्तु।
इसके बाद हाथ जोड़कर भगवान् का स्मरण करते हुए पाठ करे—
प्रमादात्कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत। स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णं स्यादिति श्रुति।।
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु। न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्।।
यत्पादपंकजस्मरणात यस्य नामजपादपि। न्यूनं कर्म भवेत्पूर्णं तं वन्दे साम्बमीश्वरम्।।
ॐ विष्णवे नमः। ॐ विष्णवे नमः। ॐ विष्णवे नमः।
तर्पण-विधि समाप्त।